(181 )
अभिनन्दन करते हैं आज तुम्हारा
है साथ तुम्हारे आशीष हमारा
अपनी जान बसी है जिसमें हर पल
सौंप दिया तुमको वो अपना प्यारा
(182 )
किताबों में जहां कब ढ़ूँढता है वो
जहाँ गूगल वहीँ पर डूबता है वो
धरोहर ज्ञान की इन में छिपी रहती
किताबों से भला क्यों ऊबता है वो
(183 )
ज़िन्दगी ये कभी भी ठहरती कहाँ
है कभी ये यहाँ तो कभी है वहाँ
मंजिलें भी सुनो रोज मिलती नहीं
चाहतों का लुटा कारवाँ है यहाँ
डॉ अर्चना गुप्ता