तकरार धूप और ए सी की

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कड़ी ठण्ड मे छत परबैठी
धूप कहे ए सी से इतराए।
मेरे तो दीवाने सब
तू यहाँ पड़ा कुम्हलाये।
मेरे कतरे की भी क़ीमत
में दिखूं तो सब मुस्काये।
मुझको पाने को  आतुर सब
वस्त्र भी उन्हे ना भाये ।
मेरी संगत मे जीवन का
सब आनंद लेते जाएँ।
ना निकलू तो देखेँ रस्ता
सब टकटकी लगाएं।

ए सी बोला मत कर बहना
घमंड ये टूट ना जाये।
गर्मी के दिन आने दे
तू किसी से सही ना जाये।
तुझसे ही बचने की खातिर
ये मोटे पर्दे लटकाएं।
बाहर भी निकले गर कोई
पूरा ही ढक कर जाये।
आज तू हंस ले दिन सर्दी के
सब तुझको गले लगायेँ।
तपती दहकती गर्मी मे
कोई मेरे बिन रह ना पाएं।

समय समय की बात है
कब किसका वक़्त बदल जाये।
आज जो तेरे अपने हैं
कल यही मुझे अपनायेँ।

डॉ अर्चना गुप्ता

 

 

मुझे मनुष्य नहीं कुत्ता बनाना

 


सुबह की सैर भी  कमाल की होती है।  सब ओर खुशनुमा सा वातावरण।  सूरज की तलाश मे नया २ जन्म लेता सवेरा  उसकी किरणों को अपनी बाँहों मे लेने को आतुर सा। अंगड़ाई सी लेते अभी अभी सोकर उठें पेङ ,पौधे ,फूल पत्ते । चहचहाते पक्षी और कोयल की कुहू कुहू का  मधुर स्वर। कहीं मंदिर से आती घंटों की आवाज। मंद मंद चलती उन्मुक्त पवन। ये सब जैसे मन में नई स्फूर्ति और चेतना का प्रवाह कर देते  है। रोज मैं   नये नये अनुभव लेते हुए इन सब का आनन्द उठाती हूँ। बहुत लोगों से भी मिलना होता है। कोई दौड़ लगा रहा होता है , कोई कानोँ  मे ईयरफोनलगाये  हुए अपनी ही धुन मे चला जा रहा होता है। कुछ समूह में राजनीतिक वार्तालाप करते हुए होते है,  लेडीज घर गृहस्थी की बाते करते हुए,  कुछ औरोँ की बगिया से चुपके  से पुष्प तोड़ते   हुए ,तो लड़के सलमान खान बनने की धुन मे व्यायाम करते हुए।  मुझे बड़ा ही मज़ा आता है ये सब देखने मे।।मैं सैर करती रहती हूँ और मेरे साथ साथ चलते हैं अनगिनत विचार। कभी २ ऐसे विचार भी होतें हैं कि खुद ही मन ही मन मुस्कुरा उठतीं हुँ और कभी यही विचार कुछ सोचने के लिये भी मज़बूर कर देते हैं। एक ऐसी ही घटना और विचार से आपको वाकिफ कराना  चाहतीं हूँ ।

कुछ लोग अपने लाड़ प्यार से पाले  डॉगी को  भी साथ लेकर घूमते हैँ।  जब उन डॉगीज़  को देखती हूँ तो  लगता है ये भी कुछ हमारी तरह ही सोचते हैं और आपस में बातें करते हैं। जब अपने मालिक के साथ गर्व से चलता हुआ जंज़ीर से बंधा नवाबी डॉगी जब स्ट्रीट डॉग से मिलता  है तो उसकी आँखों मे मनुष्य की भांति ही गर्व सा दिखता है जैसे हुं, तुम कहाँ हम कहाँ। और स्ट्रीट डॉग भी उसे यूँ देखता है मानो कह रहा हो, क्या  किस्मत पाई है इसने, क्या ठाट है इसके, क़ाश हमारे भी  कर्म  बढ़िया होते तो हम भी  ऐसे हीं  आलिशान बंगलें मे पल रहे होते ।अक्सर स्ट्रीट डॉगी इकट्ठे होकर  किसी नवाबी डॉग  को देखकर उस पर सम्मिलित   स्वर मेँ भोंकना शुरु कर देते हैं, मानो अपना फ़्रस्टेशन निकाल रहे हों कि  बड़ा आया नवाब कहीं का। फिर तो उसे बचाने में मालिक के भी पसीने छूट जाते हैं।  कभी कभी  नवाबी डॉगी स्ट्रीट डॉग से खेलना भी चाहता है पर मालिक  की डांट  खाकर हट जाता है मानो समझ गया हो कि अपने स्तर के लोगों मे उठो बैठो।

कल एक ७-८ साल के बच्चे को कूड़े के ढ़ेर पर बैठें देखा। कुछ बीन रहा था।  शायद भूखा भी  था क्योकि   उसमेँ से कुछ बीन बीन कर खा भी  रहा था। तभी एक नवाबी डॉगी भी वहां आकर कुछ सूंघने लगा। मालिक ने कस कर डांटा ,नो बेबी ये गन्दा है चलो यहॉँ से और जेब से डॉगी स्पेशल बिस्कुट उसको खिला दिये।  डॉगी तो चला गया वहां से पर वो बच्चा सूनी सूनी आँखों से देखता रहा उसे जाते हुए ,मानो कह रहा हो काश में कुत्ता होता।।या सोच रहा हो  नहीं चाहिए ये मनुष्य योनि, मुझे तो कुत्ता ही बनाना ऐसा वाला।  फिर लग गया वो बीनकर कुछ खाने मे।किंकर्तव्यविमूढ़ सी मै घर वापस  आ गयी लेकिन सोचती रह गयी क्या है ये ज़िंदगी ?????????

 

बाज़ारवाद वोट का

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वोट पर भी
बाज़ारवाद की
परत मत चढाओ।
स्याही दिखाकर छूट देकर
अपनी सेल मत बढाओ।
हमारा हक़ हमारी ताकत
है हमारा वोट।
इसे भी भुना सकते हो
येगलत  सन्देश मत फैलाओ।

डॉ अर्चना गुप्ता

 

चुनाव एक मनोरंजन

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रोज हो रहे है सियासी हमले

गरम सियासत के बहाने

लगे हैं नेता

एक दूसरे को पटकने,

चुनाव का

कोई फायदा हो या न हो

पर मनोरंजन तो कर दिया

हम सबका रोज इसने।

 

– डॉ अर्चना गुप्ता 

ज़िंदगी का फलसफ़ा

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ज़िन्दगी है तोहफा कहा जाता मगर
मेरा फलसफा अलग आता नज़र
निराशा भरी ये जीवन की डगर
सावन भी सूखा आता नज़र

ठोकरें देते राह के पत्थर
पहाड़ के जैसे आते नज़र
गुमनामी भरा मेरा ऐसा सफर
रोशनी में भी तम आता नज़र

बेरंग सा चहुंओर मंज़र
बसंत भी पतझड़ आता नज़र
जब तन्हाई में उठता यादों का बवंडर
ख़ामोशी में तूफां आता नज़र

खाकर पीठपीछे से खंज़र
फ़र्क़ गैर अपनों का नहीं आता नज़र
अलग सा है कुछ ये मेरा सफर

क्यों है ये न जानूँ मगर

डॉ अर्चना गुप्ता

वोट की चोट

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लोकतंत्र के इस महाकुंभ में
सही उम्मीदवार चुनने में
मतदान का करो प्रयोग
हमारी तो यही सोच

नियमों को ताक  पर रखने वाले
राजाज्ञा के नाम पर
मनमानी करने वाले
अफसरों पर लगाओ रोक
हमारी तो यही सोच

नन्हे बच्चों वाली माताओं पर
बुजुर्गों और बीमारों पर
मत चलाओ सरकारी जोर
हमारी तो यही सोच

पार्टी के नाम पर ना देकर
सही उम्मीदवार को चुनकर
लगाओ भ्रष्टाचार पर कुछ रोक
हमारी तो यही सोच

ना हो कोई भी पसंद
तो भी ना हो घर में बंद
NOTA पर लगाओ वोट
हमारी तो यही सोच

मारो  वोट की चोट
जन जन में यही जोश

डॉ अर्चना गुप्ता

एक छोटी सी भूल

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हो गयी हमसे छोटी सी भूल
तुमसेरूठने का कर गयी कसूर
वो था तेरे प्यार का सुरूर
तुम समझे उसे मेरा गुरुर
गुरुर तो था मुझे मेरे प्यार पर
सोचा लाख रूठू मना लोगे आकर
पर तुम तो हो गए खफा
समझ कर हमें बेवफा
हो गयी हमसे अब ये खता
देना चाहे कुछ भी सजा
पर बेरुखी तेरी नही कुबूल
मुझे छोड़ जाना नही मंजूर
अश्रु ये मेरे नही फ़िज़ूल
तुमसे समझने में हुई भूल
अश्क़ये मेरे पश्चाताप के
दर्दे दिल है जो आँखों से बहे
चाहे तुम मुझ पर करो न यकीं
दिल है मेरा पूरा मुतमईन
आओगे लौट कर एक दिन जरुर
प्यार पर अपनेमुझे अब भी गुरुर

-डॉ अर्चना गुप्ता

 

आखिरी सफ़र

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वही जमी वही गलियारे
वही दृश्य वही नज़ारे
बस किरदार बदल जाते है
जाने वाले बस
यादें बन कर रह जातें हैं

जीवन भर सबके साथ रहे
सुख दुःख जिनके साथ सहे
अंतिम सफ़र में तो
अकेले ही रह जातें हैं

अपने सब पीछे ही
खड़े रह जाते हैं

ये जीवन है एक ऐसी बज़्म
जब चले गए सब बात ख़त्म
छलावा है यहाँ सब तब
कहाँ ये समझ पातें  हैं
जीवन में यूँ ही बस
भटकते रह जाते हैं

वक़्त बढ़ता है जैसे आगे
धूमिल पड़ जाती हैं यादें
बस तस्वीरोंमें ही
टंगे रह जाते हैं
सूखे फूलों की माला में
सिमट कर रह जाते हैं।

जाने वाले बस
यादें बन कर रह जातें हैं

डॉ अर्चना गुप्ता

अभिनन्दन बहु का


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पल्लवित हो अपनी जननी के आँचल में

रोंपी गई हो अब अपने पिया के आँगन में
लेकर हज़ार सपने इन नयनों में
अभिनंदन तुम्हारा बहु इस घर में

खो गयी मै भी पल भर को उन्ही पलों में
जब रखा था पहला कदम इसी आँगन में
आज रख तुम पर अपना मै आशीष का हाथ
बाँटना चाहती हूँ कुछ अनुभव तुम्हारे साथ

कठिन है पले पौधे का  कही और रोपा जाना
करुँगी कोशिश पूरीमैं अच्छा माली बनना

नए घर नए रिश्तों से हुआ है तुम्हारा सामना
समर्पण से होगा तुम्हे भी इन सबको थामना

वादा है मेरा चाहे कैसी भी हो घडी
पाओगी मुझे अपने ही साथ खड़ी
न थोपूंगी तुम पर कोई बंधन न रस्मों रिवाज
पर अब तुम्ही हो इस कुल की लाज़

जब भी पाना खुद को किसी कश्मकश में
देख लेना रख खुद को उसी अक्स में
तभी पा सकोगी उसका सही हल
हो पाओगी इस जीवन में सफल

मेरे जीने की वजह है तुम्हारा हमसफ़र
संग तुम्हारे ही है उसकी खुशियां मगर
जुडी हैं उसकी साँसे भी मेरी साँसों से
मत रखना दूर उसको उसके इन अहसासों से

जुड़ जाना खुद भी उसके परिवार से
भर जायेगा मेरा दामन भी खुशियों से
बन सच्ची हमसफ़र उसका साथ निभाना
अपने जीवन के हर सपने को सच बनाना।

डॉ अर्चना गुप्ता

 

यादें अतीत की

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बादलों के बीच जब
चाँद निकल आता
मैं खो जाती कहीं
सारा जहाँ सो जाता

तारों के झुंड में
निहारती उसे
यादों के झुरमुटों में
टटोलती उसे
अपने घर का वो अंगना
बड़ा याद आता
मैं खो जाती कहीं
सारा जहाँ सो जाता

वो बचपन की यादें
लगाती गले
वो अल्हड़ सा यौवन
पुकारे मुझे
गया वक़्त कभी फिर
वापस ना आता
मैं खो जाती कहीं
सारा जहाँ सो जाता

आज का भी वक़्त
बन जायेगा अतीत
इसे भी याद  करके
उठेगी दिल में टीस
गुपचुप सा एक अश्क
गालों  पे फिसल जाता
मैं खो जाती कहीं
सारा जहाँ सो जाता

-डॉ अर्चना गुप्ता