(202 )
वो चित्र बहुत अब भाता है
जो माँ की याद दिलाता है
प्यारे प्यारे बचपन के दिन
दिखला आँखें भर लाता है
(203 )
मीत होकर भी नहीं स्वीकार करते
क्यों हमारे प्यार से इन्कार करते
आज तक भी ये समझ पाये नहीं हम
बस दिखावे के लिये मनुहार करते
(204 )
वक्त कर्मों का सिला देता है
आस के गुल को खिला देता है
ये कभी रुकता नहीं चलता बस
वक्त बिछड़ों को मिला देता है
डॉ अर्चना गुप्ता