वही जमी वही गलियारे
वही दृश्य वही नज़ारे
बस किरदार बदल जाते है
जाने वाले बस
यादें बन कर रह जातें हैं
जीवन भर सबके साथ रहे
सुख दुःख जिनके साथ सहे
अंतिम सफ़र में तो
अकेले ही रह जातें हैं
अपने सब पीछे ही
खड़े रह जाते हैं
ये जीवन है एक ऐसी बज़्म
जब चले गए सब बात ख़त्म
छलावा है यहाँ सब तब
कहाँ ये समझ पातें हैं
जीवन में यूँ ही बस
भटकते रह जाते हैं
वक़्त बढ़ता है जैसे आगे
धूमिल पड़ जाती हैं यादें
बस तस्वीरोंमें ही
टंगे रह जाते हैं
सूखे फूलों की माला में
सिमट कर रह जाते हैं।
जाने वाले बस
यादें बन कर रह जातें हैं
डॉ अर्चना गुप्ता
…deep thought wonderfully expressed!
thanx amit ji itne achhe shabdon ke liye……
Itni gahrai hai is kavita main, padh kar anayas hi Aankhe bheeg gayi
thanx mamta