आज नारी अबला से सबला बन
नवभारत की अलख जगा रही ।
अग्रणी बन हर क्षेत्र में
जीत का परचम लहरा रही ।
आँखों में सफलता की अनोखी चमक
आँचल में भारत का स्वर्णिम भविष्य
उत्तम परवरिश से सक्षम
राष्ट्र निर्माता बना रही ।
जहाँ होती इसकी देवी रूप में अर्चना
वह आज स्वयं को सशक्त बना
एक नहीं अनेक जिम्मेदारी
बखूबी निभा रही ।
न वो है पुरुष से उच्च
न वो है पुरुष से तुच्छ
वो तो पुरुष के होकर हमकदम
सम्पूर्णता का अपनी अहसास करा रही ।
– डॉ अर्चना गुप्ता
आज की नारी का एकदम सटीक चित्रण। 🙂
धन्यवाद।
यह ठीक है कि आज की नारी कविता अतुकान्त है किन्तु यह सामयिक है। क्योंकि आज नवभारत का निर्माण हो रहा है, और इसमें नारी का योगदान बराबर का है, कही कहीं तो पुरुष से भी ज्यादा। इसलिए कविता अच्छी है, भाव से परिपूर्ण है।
thanx so much sarvesh ji …aapne meri rachna ko wqt diya …..