बेगुनाह होकर भी
कटघरे में खड़ा होना
बहुत तकलीफ देता है।
चली हूँ केवल
दो कदम एहसास
मीलों का होता है।
सन्नाटे में भी
बस कोलाहल का
भास होता है।
ये कोलाहल
मचा हलचल
सोने भी नही देता है।
मेरे अंदर का सूनापन
मुझे काट खाने
को दौड़ता है।
दिल के जख्मों पर अब
दवा का असर भी
नहीं होता है।
एहसास तुझसे
छले जाने का हरदम
त्रास देता है।
पर घुटी घुटी सी
साँसों को अब भी
तेरा इंतज़ार रहता है।
-डॉ अर्चना गुप्ता
I am speechless. You write amazing Mom!!!
wow .. its a precious cmnt for a mother from her son. God bless you.
amazing 🙂
Thanx Deepa….