मुक्तक (४२ )

images (2)

(124 )

घाव मन के पुराने हरे हो गये

आज वो सामने जब खड़े हो गये

मुश्किलों से भुलाया उन्हें था मगर

ये नयन देख फिर बावरे हो गये

(125 )

इम्तहानों के जमाने हो गये

बिन हँसे ही ये फसाने हो गये

आह भरना यूँ हमें आता नहीं

दर्द भी हम पर दिवाने हो गये

(126 )

देखकर घाव नैना सजल हो गए

चैन खो सा गया हम विकल हो गए

प्यास कैसे बुझेगी बताओ हमें

स्त्रोत जल के सभी जब गरल हो गए

डॉ अर्चना गुप्ता

 

Published by

Dr. Archana Gupta

Dr. Archana Gupta loves to give words to her thoughts in the form of poems, stories and articles. She is passionate about learning new things and admire the beauty of the world.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *