(121 )
ऐसा क्यों कर कहते हो
तुम पलकों पर रहते हो
जीवन के हर सुख दुख को
साथ तुम्हीं तो सहते हो
(122 )
मै अकेले सफ़र कर रहा हूँ
ज़िन्दगी यूँ बसर कर रहा हूँ
रोशनी तो मिली ही नहीं है
तीरगी में गुज़र कर रहा हूँ
(123 )
मन सागर की बहती लहरें
सुख दुख दोनों सहती लहरें
गीतों में ढल ढल कर सारे
जग की बातें कहती लहरें
डॉ अर्चना गुप्ता