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प्यार भरी दुनियाँ को अब वो छोड़ आया है
मुँह अपनों से ही देखो वो मोड़ आया है
ये उसकी बदनसीबी नहीं और तो क्या है
अपने हाथों ही अपना घर तोड़ आया है
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संस्कारों को’ वो सब भुलाये हुए
सभ्यता हाथ अपने मिटाये हुए
देख जो कर रहे नाश इस देश का
आज परचम वही हैं उठाये हुए
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वो तो डूबा था फिर किनारे पर
उसके भोले से इक इशारे पर
उठती लहरों ने बस कहा इतना
जुल्म न ढाओ अब इस बिचारे पर
डॉ अर्चना गुप्ता