बंद आँखों की डिबिया से
एक सपने ने देखा झांक कर
फिर रोका अपने कदमों को
घना अंधकार देखकर
बाहर निकलने को
वो सपना आतुर था
असर ना उस पर मन के
समझाने का था
वो तो बस मचल पड़ा
दहलीज़ आँखों की
पार कर डरते डरते
बाहर निकल पड़ा
जुबां नहीं थी उसकी
पर अरमान तो थे
खुला आसमान ऊपर
हौंसले बुलंदी पर थे
राह में मुश्किलें भी कुछ
कम नही आई उस पर
कभी अपनों ने कभी गैरों ने
खूब सितम किये उस पर
राह में उसके कई जगह
पैरों में हुई कुछ जलन
वो थी कुछ सपनों के
आत्मदाह की ही अगन
पर हुआ ना वो विचलित
रहा अपने पथ पर अढिग
कुछ नए सृजन की आद्रता से
कुछ कृत संकल्प की ऊष्मा से
सपने के बीज बीजित हुए
सपना पूरा करने को
बादल भी जैसे बरस गए।
-डॉ अर्चना गुप्ता
अहसासो से भरा हुआ सपने का सफर ।
धन्यवाद दीपा।
Sapne ka safar bahut achchha hai
धन्यवाद ममता इसे पसंद करने के लिए।
प्रशंसनीय प्रस्तुति
शुक्रिया राजेंद्र जी।
Mausi ur poems are amazing
thanx beta … tumne pad bhi liya sabko itni jaldi.Intelligent girl.
Very nice mem
thanx jai bhagwan sharma ji
very nice
thanx hemaji
bahut sundar krati hai archana ji
thanx