(124 )
घाव मन के पुराने हरे हो गये
आज वो सामने जब खड़े हो गये
मुश्किलों से भुलाया उन्हें था मगर
ये नयन देख फिर बावरे हो गये
(125 )
इम्तहानों के जमाने हो गये
बिन हँसे ही ये फसाने हो गये
आह भरना यूँ हमें आता नहीं
दर्द भी हम पर दिवाने हो गये
(126 )
देखकर घाव नैना सजल हो गए
चैन खो सा गया हम विकल हो गए
प्यास कैसे बुझेगी बताओ हमें
स्त्रोत जल के सभी जब गरल हो गए
डॉ अर्चना गुप्ता