मुक्तक (४२ )

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(124 )

घाव मन के पुराने हरे हो गये

आज वो सामने जब खड़े हो गये

मुश्किलों से भुलाया उन्हें था मगर

ये नयन देख फिर बावरे हो गये

(125 )

इम्तहानों के जमाने हो गये

बिन हँसे ही ये फसाने हो गये

आह भरना यूँ हमें आता नहीं

दर्द भी हम पर दिवाने हो गये

(126 )

देखकर घाव नैना सजल हो गए

चैन खो सा गया हम विकल हो गए

प्यास कैसे बुझेगी बताओ हमें

स्त्रोत जल के सभी जब गरल हो गए

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (41 )

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(121 )
ऐसा क्यों कर कहते हो

तुम पलकों पर रहते हो

जीवन के हर सुख दुख को

साथ तुम्हीं तो सहते हो

(122 )

मै अकेले सफ़र कर रहा हूँ

ज़िन्दगी यूँ बसर कर रहा हूँ

रोशनी तो मिली ही नहीं है

तीरगी में गुज़र कर रहा हूँ

(123 )

मन सागर की बहती लहरें

सुख दुख दोनों सहती लहरें

गीतों में ढल ढल कर सारे

जग की बातें कहती लहरें

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (40 )

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(118 )

जुल्मी घटा घिरी है कितना हमें डराये

अब आँख से हमारी सावन बरस न जाये

नित रोज ही बहाने करते नये नये तुम

हम प्यार ये तुम्हारा बिल्कुल समझ न पाये

(119 )

बस याद हमको आपकी नादानियाँ रहीं

लब चुप रहे पर बोलती खामोशियाँ रहीं

हमने हजारों दीप यादों के जला लिये

चाहे ज़माने की लगी पाबंदियाँ रहीं

डॉ अर्चना गुप्ता

(120 )

जब भी कभी डिगे पग ,पथ आपने दिखाया

हर हौंसला बढ़ाकर ,आगे हमें बढ़ाया

जब टूटकर बिखर कर ,बरबाद हो रहे थे

तब ज़िन्दगी से हमको ,था आपने मिलाया

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (39 )

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(115 )

कहने को तो झंडे का सत्कार किया करते हो

तेरा मेरा कहकर फिर तकरार किया करते हो

सतरंगी दुनियाँ में देखो सारे रंग सुनहरे

केवल अपने रंगों से क्यों प्यार किया करते हो

(116 )

मेरे भारत का गौरव बन खुद गर्व हिमालय करता है

नदिया के सीने में भी तो नक्शा भारत का बसता है

जो लाल किले पर लहराता वो शान हमारे जीवन की

हर भारतवासी को झंडा प्राणों से प्यारा लगता है

(117 )

दीवार खड़ी जो धर्मों की उसको आज गिराना होगा

जन गन मन अधिनायक जय का गान मधुर अब गाना होगा

पाई हमने जो आज़ादी वीरों की कुर्बानी देकर

उसको श्रम के फूलों से फिर हमको आज सजाना होगा

 

अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (38 )

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(112 )

झुर्रियां  अब बे हिसाब बन गई

मोहब्बतों की किताब बन गईं

याद माँ की आ रही है  देखकर

पाखुरी खिल खिल गुलाब  बन गईं

(113 )
गुनगुनी धूप का हो रहा भास है

दूर होगी गलन अब यही आस है

लोग भी आ गये हैं छतों -पार्क में

हर किसी में नया आज उल्लास है

(114 )
याद के दीपक जलाये

प्रीत में सपने सजाये

ज़िन्दगी ने जब दिये गम

अश्क के मोती लुटाये

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (37 )

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बीता वक़्त हँसाता है

बीता वक़्त रुलाता है

प्यारी सी  यादें बनकर

जीवन भर तड़पाता है

(110 )
चाँद सितारों में बात वही

सावन की  भी बरसात वही

बीता वक्त हुआ बेगाना

पर यादों की सौगात वही

(111 )

आप ही तो कामना हो

आप मन की भावना हो

आप के बिन हम अधूरे

आप ही आराधना हो
डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (36 )

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(106 )
मीत  होकर भी नहीं स्वीकार करते हो

क्यों हमारे प्यार का  व्यापार करते हो

हम समझ पाये नहीं ये आज तक साथी

क्यों भुलाने को हमें लाचार करते हो

(107 )
रूप कैसे है दिखाती ज़िन्दगी भी

खिलखिलाती तो रुलाती ज़िन्दगी भी

साथिया जी लो मिलेगी कब दुबारा

पाठ हरदम ये सिखाती ज़िन्दगी भी

(108 )

आप हो जीवन हमारे

चाँद सूरज और तारे

जिन्दगी कट जाएगी अब

एक दूजे के सहारे

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (35 )

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(१०३)

आपके बन कर रहेंगे देख लेना

आपके मन की कहेंगे देख लेना

प्यार इतना आपसे हमने किया है

दर्द भी हंसकर सहेंगे देख लेना

(104 )
चाँद ये जब चाँदनी को प्यार करता है

पूर्णमासी को मिलन सिंगार करता है

देखकर पावन मुहब्बत झूमते तारे

रूप इनका प्रेम को साकार करता है

 

(105 )

वक़्त ने जब कभी सताया है

हौसला हर कदम बढ़ाया है

लाख दुश्मन बना जमाना ये

साथ बस आपने निभाया है

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (34 )

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(100)

सुनो दर्द में मुस्कुराने लगे हम

गजल तो कभी -गीत गाने लगे हम

नया साल आया लिये आज खुशियाँ

तुम्हें पा प्रिये खिलखिलाने लगे हम

(101)

नया साल आया चमन को सजालो

जो रूठे हुये हैं उन्हें तुम मनालो

गया वक्त वापस नहीं आएगा फिर

यहाँ हर ख़ुशी को गले से लगालो

(102)
नैनों में आसूँ भर आये

साथ पुराना छूटा जाये

यादों में तुम सदा रहोगे

विदा तुम्हारी हमें रुलाये

डॉ अर्चना गुप्ता

 

कुण्डलिनी छंद (3 )

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(7)

जल में जब नौका रहे, सँभल सके  हर कोय

जल यदि नौका में रहे , बचना मुश्किल होय

बचना मुश्किल होय ,यही संतों की बाणी

कभी न खोना होश ,काम की बड़े जवानी

(8)

त्रेता में सब राम थे   रावन  हुआ न हो

जब  इक रावन हो गया  बचा सका कब कोय

बचा सका कब कोय  बनायें ऐसा शासन

आओ मिलकर आज जला डालें सब रावन

(9)

किस्मत में है जो लिखा ,टाल सका कब कोय

तू पाने की चाह में ,चैन भला क्यों खोय

चैन भला क्यों खोय ,कर्म कुछ अच्छे कर ले

लेकर जन -आशीष ,झोलियाँ अपनी भर ले

डॉ अर्चना गुप्ता*******