मुक्तक (65 )

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(193 )

प्यार का जादू चलाना छोड़ दो

इस तरह से दिल जलाना छोड़ दो

है बहुत नाजुक हमारा दिल सनम

रूप की बिजली गिराना छोड़ दो

(194 )

दो ह्दय जो मिले प्रेम के हैं सुमन

बन कमल दल खिले प्रेम के हैं सुमन

उम्र भर प्यार की चाह दिल में रहे

भूल जाओ गिले प्रेम के हैं सुमन

(195 )

तुम्हारा प्यार भाता है लुभाता है

हमेशा राह सच्ची ये दिखाता है

नही है खून का पर लग रहा हमको

हमारा आपसे अनमोल नाता है

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (64 )

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(190 )

चमन में फूल लाखों हैं मगर इक दिल लुभाता है

किया कब प्यार जाता है , हो’ अपने आप जाता है

नहीं सीधी डगर है प्यार की दिल जानता है पर

कहाँ परवाह करता वो ख़ुशी से जां लुटाता है

(191 )

होता क्या संसार अगर वो प्यार नहीं देता

जीत दिलाता सबको लेकिन हार नहीं देता

बस नफरत ,लालच के ही शूल चमन में होते

मानवता का यदि जग में व्यवहार नहीं देता

(192 )

पहने हुये वो तो नकाब आये

बस प्यार का देने जवाब आये

देखी जरा सी जो झलक लगा ये

जैसे कली पर गुल शबाब आये

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (63 )

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(187 )

पीर की है नदी अश्क की धार है

डूबते पर नहीं प्रीत पतवार है

रीत बेदर्द है इस जहाँ की बड़ी

है जुदाई वहाँ पर जहाँ प्यार है

(188 )
छुपाना कठिन है बहुत प्यार मेरा

अधूरा रहेगा तुम्हारा बसेरा

अकेले नहीं जी सकोगे जहां में

मुझी से मिलेगा ख़ुशी का सवेरा

(189 )

जाने कब वो इनाम आएगा

दिल को उनका सलाम आएगा

रास्ता ढ़ूँढता है मंजिल को

देखिये कब मुकाम आएगा
डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (62 )

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(184 )

कमाया नाम भी हमने कमाई खूब दौलत भी

नहीं अब साथ में कोई खड़े तन्हा अकेले ही

कभी जब धन नहीं था सोचते थे धन ख़ुशी देगा

मगर जाना ये’ अब हमने वही खुशियाँ थी’ प्यारी सी

 (185 )

जख्म जो दिल पर लगें उनके निशां जाते नहीं

दूर इतनी वो गए कुछ भी खबर पाते नहीं

आज तन्हा ही अकेले हम खड़े है इस जगह

है अँधेरी रात अब साये नज़र आते नहीं

 (186 )

जब जब रिश्तों से अपना नाता टूट गया

अनमोल खजाना यादों का बस छूट गया

हम जीते तो हैं अधरों पर मुस्कान लिए

पर चैन हमारे दिल का कोई लूट गया

डॉ अर्चना गुप्ता

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मुक्तक (61 )

 

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(181 )

अभिनन्दन करते हैं आज तुम्हारा

है साथ तुम्हारे आशीष हमारा
अपनी जान बसी है जिसमें हर पल

सौंप दिया तुमको वो अपना प्यारा
(182 )

किताबों में जहां कब ढ़ूँढता है वो

जहाँ गूगल वहीँ पर डूबता है वो

धरोहर ज्ञान की इन में छिपी रहती

किताबों से भला क्यों ऊबता है वो

(183 )

ज़िन्दगी ये कभी भी ठहरती कहाँ

है कभी ये यहाँ तो कभी है वहाँ

मंजिलें भी सुनो रोज मिलती नहीं

चाहतों का लुटा कारवाँ है यहाँ

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (60 )

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(178 )

पावन जल कम हो रहा, देख डरे इंसान
कारण क्या सोचे नहीं,  बना हुआ  अंजान
समय शेष है रोकिये , जल बर्बादी  आज
तरस न जायें देखिये , जल को फिर सन्तान

(179 )

पहचानने से जब हमें इंकार कर दिया
इस ज़िन्दगी को आप ने दुश्वार कर दिया
हम जानते मज़बूर होगे आप भी बहुत
जो आप ही खुद दर्द का विस्तार कर दिया

(180 )

छत पर खिले इस चाँद सा जलता रहा हूँ रात भर
मैं देख उसके  दाग को  ढलता रहा हूँ रात भर
कहता यही कोई बता दे   भूल मेरे प्यार की
मैं  आज उस की याद  में  गलता रहा हूँ  रात भर

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (59 )

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(175 )

मैं पत्थर हूँ तुम पारस हो

मेरे उर का तुम साहस हो

तुम जीवन का वो उजियारा

जो दीप बने जब मावस हो

(176 )

पटक कर पत्थरों से सर वहीं से लौट आती है

लहर मायूस होकर फिर उसी में तो समाती है

दिखाता जख्म अपने कब समुन्दर प्यार में देखो

बहा आंसूं बने खारा ,मगर वो खिलखिलाती है

(177 )

तरन्नुम को मिले जब साज़ तो कुछ खास होता है

मचलते हैं बड़े जज्बात जब तू पास होता है

बिताये पल की वो यादें समेटी हैं कहीं दिल में

लगे है प्यार का शायद यही इतिहास होता है

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (58 )

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(172 )

प्यार भरी दुनियाँ को अब वो छोड़ आया है

मुँह अपनों से ही देखो वो मोड़ आया है

ये उसकी बदनसीबी नहीं और तो क्या है

अपने हाथों ही अपना घर तोड़ आया है

(173

संस्कारों को’ वो सब भुलाये हुए

सभ्यता हाथ अपने मिटाये हुए

देख जो कर रहे नाश इस देश का

आज परचम वही हैं उठाये हुए

(174 )

वो तो डूबा था फिर किनारे पर

उसके भोले से इक इशारे पर

उठती लहरों ने बस कहा इतना

जुल्म न ढाओ अब इस बिचारे पर

 

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (57 )

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(169 )

चाँद तुझको मान तेरी चाँदनी में झूम लूँ

या तुझे सूरज समझ कर धूप बनकर घूम लूँ

मिट गया तम ज़िन्दगी का फूल खुशिओं के खिले

मन करे भर कर हथेली में तुझे मैं चूम लूँ

 (170 )

बिटिया से साँझ सवेरा है

बिटिया खुशियों का डेरा है

दुनिया ये ख़त्म शुरू उस पर

क्यों गम ने उसको घेरा है

 (171 )

माँ भवानी का सजा दरबार देखो

माथ टीका औ गले का हार देखो

बज रहे घड़ियाल घंटे मंदिरों में

हो रही हर ओर जय -जयकार देखो

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (56 )

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(166 )

नफरतों को छोड़कर बस प्यार करना चाहिए

यदि मिले कोई दुखी संताप हरना चाहिए

ज़िन्दगी है चार दिन की ध्यान ये रखना सदा

सिर्फ अपने फर्ज पर हर वक्त मरना चाहिए

(167 )

ओट में खुद को छिपाया चाँद ने फिर आज देखो

रात का घूँघट उठाया चाँद ने फिर आज देखो

खो गयी थी चाँदनी उसकी अमावस में कहीं

ढ़ूँढ कर सीने लगाया चाँद ने फिर आज देखो

(168 )

जुल्म कितना कर गये

नैन आसूँ भर गये

हम बिछड़कर आपसे

जीते’जी ही मर गये

डॉ अर्चना गुप्ता