(133 )
यदि कदम फूंक कर मै चला नहीं होता
पाँव मेरा जले बिन बचा नहीं होता
मुश्किलों से कभी भी डरा नहीं वरना
मैं यहाँ गिर के फिर से उठा नहीं होता
(134 )
कष्टों से हम लड़ लेते हैं
दुख में सुख को गढ़ लेते हैं
जन्मों का ये रिश्ता अपना
आँखों से सब पढ़ लेते हैं
(135 )
ये जिन्दगी भी दर्द की मुस्कान बन गई
ये आँसुओं की धार ही पहचान बन गई
किस्मत हमारी वक्त ने इस प्यार से लिखी
ये आज अपनी जिन्दगी की शान बन गई
डॉ अर्चना गुप्ता